119》एक लम्बा सफ़र, अंजान डगर
तीखी सी धूप , ख़ाली था शहर..
कुछ हवा के झोंके, तेरा आँचल खींचे
तेरी बिखरी जुल्फें, इक छाँव के नीचे...
वो हया की लाली, तेरे कान की बाली
तू ख़ुद में सिमटी ,तेरी बेचैन निगाहें...
थोड़ा मुझमें तू, थोड़ा तुझमें मैं
बस बाकी थे हम, ना तू ना मैं...